आत्मा मरती नही अमर है

🌹कृष्ण ने गीता में कहा है कि आत्मा मरती नहीं🌹

तो अर्जुन को कहा है कि तू मार बेफिक्री से, क्योंकि कोई आत्मा मरती नहीं। इसलिए अहिंसा का और हिंसा का कोई सवाल ही नहीं उठता। महावीर भी कहते हैं, आत्मा मरती नहीं; कोई मार सकता नहीं। पर महावीर हिंसा-अहिंसा का बड़ा सवाल उठाते हैं।

कृष्ण की दलील समझने जैसी है। कृष्ण कहते हैं, जब कोई मारा ही नहीं जा सकता, तो लोगों को यह समझाना कि मत मारो, मूढ़तापूर्ण है। जब मारने का कोई उपाय ही नहीं है, तो यह कहने का क्या अर्थ है कि मत मारो! और अगर कोई नहीं भी मार रहा है तो कौन-सा गुण उपलब्ध कर रहा है। क्योंकि मार सकता कहां है? जब हम एक आदमी को काटते हैं, तो शरीर ही कटता है। वह मरा ही हुआ है। उसको मारने का कोई उपाय नहीं है। आत्मा कटती नहीं।

कृष्ण कहते हैं: न हन्यमाने शरीरे—काटो कितना ही, तो भी कटती नहीं। छेदो तो छिदती नहीं। जलाओ तो जलती नहीं। तर्क कृष्ण का बहुत साफ है कि जब कोई मारने से मरता ही नहीं, मारा नहीं जाता, तो अर्जुन, तू फिजूल की बकवास में क्यों पड़ा है कि लोग मर जायेंगे? यह अज्ञान है।

बड़ा कठिन है। महावीर भी जानते हैं कि आत्मा मरती नहीं; आत्मा मिट नहीं सकती। सच तो यह है कि कृष्ण से भी ज्यादा महावीर का मानना है कि आत्मा को मिटाने का कोई उपाय नहीं है। क्योंकि कृष्ण तो कहते हैं, परमात्मा की लीला है कि वह बनाता है और चाहे तो मिटा सकता है। महावीर के लिए तो कोई मिटानेवाला भी नहीं है। परमात्मा भी नहीं है। आदमी की तो सामर्थ्य नहीं है।

आत्मा को न कोई पैदा करता है, और न कोई मिटा सकता है। आत्मा शाश्वत है; अमृतत्व उसका गुण है। फिर भी महावीर कहते हैं—हिंसा और अहिंसा। तो समझ लें इस संदर्भ में।

महावीर कहते हैं कि जब तुम हिंसा करते हो, तो तुम दूसरे को नहीं मारते, लेकिन हिंसा के भाव से खुद के लिए दुख पैदा करते हो। तुम मारने की धारणा बनाते हो, उस धारणा से ही तुम पीड़ित होते हो। दूसरे के मरने से पाप नहीं होगा। क्योंकि दूसरा मर नहीं सकता। लेकिन तुमने पाप करना चाहा। तुम पाप के विचार से भरे। तुमने दूसरे को नुकसान पहुंचाना चाहा; उसका जीवन छीन लेना चाहा। तुम नहीं छीन पाते। यह तुम्हारे हाथ की बात नहीं है। यह जगत का नियम है। लेकिन तुमने अपनी पूरी कोशिश की। उस कोशिश, उस विचार, उस भावना, उस वासना, उस दुष्ट वासना के कारण तुम अपने लिए दुख पैदा करोगे। हिंसा दुख लायेगी—दूसरे के लिए मृत्यु नहीं, तुम्हारे लिए दुख। अहिंसा दूसरे को बचायेगी नहीं, क्योंकि दूसरा बचा हुआ है अपने आंतरिक जीवन से। कोई उसे बचा नहीं सकता। लेकिन दूसरे को बचाने की धारणा तुम्हारे जीवन में सुख के फूल खिलायेगी।

महावीर कहते हैं, तुम जो भी करते हो, वह तुम्हीं को हो रहा है; और निरंतर तुम्हीं को होता चला जाता है। तो दूसरे कैसे हैं—अच्छे या बुरे—इसका विचार नहीं करना। अच्छे हैं तो अपने कारण; बुरे हैं तो अपने कारण। यह उनकी निजी बात है। इससे दूसरों को कोई लेना-देना नहीं है। वे नर्क जायेंगे कि स्वर्ग जायेंगे, यह उनकी चिंता है। इसमें दूसरों को चिंता लेने का कोई कारण नहीं है।

ओशो🌹🌹