* गरब कौ छाँड़ दे दरब भी जायगा,
मूड़ मन मगज मैं कांई हारै*
संत कह रहे हैं कि, हे मूर्ख मन, अहंम को त्यागकर, मनुष्य जन्म के रहते, चेत जा।
अभी समय शेष है, समय के रहते चेत जा, अन्यथा मनुष्य जन्म व्यर्थ ही चला जायेगा।
संसार की मिटने छूटने बाली, उन वस्तुओं पर गरब करना, इतराना, उन्हें अपना मानना, जो कभी हमारी थीं ही नहीं, महामूर्खता है।
संसार की जितनी वस्तुयें हम देख रहे, या भोग रहे हैं, वह सभी हमें यहीं प्राप्त हुई हैं, और यहीं छूट जायेंगी।
हम जब इस नश्वर संसार से जायेंगे, तब एक सुई भी साथ नहीं ले जा सकेंगे।
पिछले जन्म में, प्रानी नें नाम ग्यान से लगे रहकर, जो अच्छे काम किये थे,
वही करनी हम साथ लेकर आये हैं।
उसी करनी से नाम ग्यान और मनुष्य जन्म प्राप्त हुआ है।
अब भी जब प्रानी इस संसार से जायेगा, तो करनी ही साथ लेकर जायेगा।
यह महल, दुमहले, यह अट्टालिकायें, और भोग विलाश, यहीं तक सीमित है, कुछ भी साथ जाने बाला नहीं।
यह मन को लुभाने, और भ्रमित करने बाला संसार, हमारी कर्म भूमि है, यहाँ रहकर हम अच्छे बुरे जो भी कर्म (करनी) करेंगे, वही प्रानी के साथ जायेंगे।
"चेत रे चेत, अचेत मूरख मना, भेद रे शब्द कौ भेद भाई"।
संत कह रहे हैं कि, हे अचेत मूर्ख मन, वख्त रहते सतगुर साहिब की सीख को समझकर अपने अन्तर मन में भिदा ले, अन्यथा समय निकल जायेगा।
"पंड कहैं कंगन बंधा, अभै भगत है जोग"।
पंडजी संत कह रहे हैं कि, अभी सब कुछ तुम्हारे हाँथ में है, अभी समय है, भक्ति कर सकते हो।
सत्तनाम।(राजमुकट साध)।
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संत कह रहे हैं कि हे मूर्ख मन अहंम को त्यागकर
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