हमारी आदत रस्सी कि भांति है

हमारी आदत रस्सी की भांति हैं,पर रोज इसमें हम एक बट देते हैं,और अंत में हम इसे तोड़ नही पाते!
           ऐसा क्यों?
डर और सम्मान दोनो अलग-अलग हैं,पर अक्सर हम इन्हें मिला देते हैं!हम अपनी गलतियों के बारे में बात करते हुए हमारे कई किन्तु-परन्तु होते हैं!हम अपने लिए समय और स्थितियों की बात भी करते हैं,और अपने लिए छूट और सहानुभुति भी चाहते हैं!लेकिन तब हम ऐसा करते हैं!जब वो गलतियां किसी दूसरे की होती हैं,किसी की गलतियों को गलती मान लेना हमारा उस गलती की वजह जान लेना भी बहुत जरूरी होता हैं!कहीं हम अन्जाने में बिना वजह जाने!कसर तो नही कमा रहे!यह हमारे विचार करने की बात हैं!लेकिन जब हम दूसरों को उनके दुण्टिकोण और परिस्तिथतियों में पहूँच कर देखते है!तब वो उनकी गलतियां उतनी बड़ी नहीं दिखायीं देती हैं!
हम समझे जानें अपने मन हृदय चित को अच्छे विचारों से सींचे!सींचते समय यह बात जरूर हर पल मनमें रहें!कि सभी कुछ मेरे दाता मालिक का हैं,तभी नाम ग्यान इस हृदय चित मन में भिदेगा!
और तभी कोई कारज बनेंगे!यह हमारे विचार करने की बात हैं!
         सत्तनाम