मन बावरा है मन चंचल है

मन बावरा है मन चंचल है मन पबन रूप भी है यह रुकता टिकता नही है इस मन को ज्ञान के द्वारा समझाकर ही रोका ब ठहराया जा सकता है ।
मन मे नाना प्रकार के संकल्प बिचार चलते ही रहते है और बिशेष तौर पर अहंकार के बिचार की अधिकता होने पर सोच का स्तर भी गिर जाता है और हम पूर्णतया मन के अधिकार मे हो जाते है ।

बिशेष गुण मन का यह भी है कि उसको श्रेष्ठता की तलाश रहती है यदि हम इस समय पर मन को मोड़ दे तो मन हमारे क़ाबू मे आ सकता है ।

।।मिलगत होय जो मन कौ मूढै ।।

सबसे श्रेष्ठ इस ब्रह्मांड मे केबल आपका धनी का
शब्द है । और यह आपके शब्द से बना है और यही पर मन तरप्त भी होगा मन को उस तरफ ले जाने का भाव रखे। मन को हमें बहुत प्यार से समझाना है ।

ऐ हो मन शब्द परख ले हो बीर ।।
शब्द परखने के लिए इसलिए कहा कि मन के अन्दर अंहु का बिकार है शब्द को परखने से मन मे अहं का नाश होगा ब अन्दर मे दिव्य शीतलता ब संतोष पैदा होगा

शब्द परख मन राखौ धीर ।
बाँह जो पकडै दास कबीर ।।।                                      ।। सत्तनाम ।।