दुखित मन

मन के खिलाफ कोई भी बात आते ही क्रोध विकराल रूप धारण करना शुरू कर देता है।फिर शुरू होता है तांडव और एक दुखित मन अनगिनत मनों को दुखित करने के लिये उतावला हो जाता है,अनगिनत दिलों को दुखाने के बाद शांति पाना चाहता है।

अब इस मन को शांति मिलना दुर्लभ हो जाता है, क्योंकि सैकड़ों दुखित मन मौका तलाशना शुरू करते हैं, इस मन को दुखित करने का।यह सिलसिला पहले जन्म से शुरू हुआ था चिरकाल पहले ,जोकि अनगिनत जन्मों में न जाने कितनी बार मल्टिपल होते होते कितना बड़ा बोझ बन चुका है।

अब यह बोझ हटाना भी हमारे वश में नहीँ।समर्पण ही एकमात्र उपाय है इस बोझ से छुटकारा पाने का।क्या हम मालिक से आस लगाते हुए हैं प्रार्थनारत रहते हैं इस बोझ से छुटकारा पाने के लिये या लगातार बोझ बढ़ाने में ही लगे हुए हैं।

निर्वाण ज्ञान सबसे ऊँचा ज्ञान क्यों है, सभी धर्म सम्प्रदाय एकमत हैं कि दूसरों के मन को मत दुखाओ, लेकिन निर्वाण ज्ञान सीधे जड़ पर प्रहार करता है (अजर बस्त तुम जिरो समझ के ,कहे सुने मत दुःखो जी) स्वयं मत दुःखो यदि हम नहीँ दूखें तो किसी को दुखाना भी सम्भव नहीँ।

संसार में भी समर्पण करते ही मामूली सजा के साथ माफ़ी मिल जाती है।अपने मालिक के आगे समर्पित होते ही बिना सजा के माफ़ी मिल जायेगी,फिर देरी किस बात की, देरी इसलिये क्योंकि अभी इस बोझ से आजिज नहीँ आये हैं, अगर आजिज आ जाते तो अरदास शुरू हो चुकी होती।(आजिज बन्दा करे अरदास) देरी सिर्फ और सिर्फ मेरी तरफ से है।