जैसे पेंड से अलग होकर पत्ते की दुर्दशा होती है, वैसे ही सत्तनाम से अलग होकर, मनुष्य, मारा मारा घूमता है।

*सत्तनाम बिना............,
             कुबधी दुख पासी"।
*सत्तनाम बिना............,
            गल जम का फांसा"।
*सत्तनाम बिना.............,
             जिव गये निराशा"।
*सत्तनाम बिना.............,
                  दर्द भारी"।
जैसे पेंड से अलग होकर पत्ते की दुर्दशा होती है, वैसे ही सत्तनाम से अलग होकर, मनुष्य, मारा मारा घूमता है।
"भरमी दुनियां वन वन डोलै, सो चौरासी मैं जाई"।
भटकत फिरैं झूंठ कौ मानै, सत्त शब्द की संध न जानैं"।
नाम हमें कभी नहीं छोडेगा, हम ही अहंकार और लोकलाज से ग्रसित होकर नाम से दूर होते चले जायेंगे, और हो न हो, एक दिन ऐसा भी आ जाये कि हम चांहकर भी बापस न आ सकें।
इसलिये हम हमेंशां सूचेती और सावधानी बरतें।
सत्तनाम।(राजमुकट साध)