*चेतना (समाजिक समाधान)*
किसी ज्वलंत समस्या पर टीका टिप्पडी करना या लेख लिखना अच्छी बात है।
मगर यह कोई समाधान नहीं है।
आज हमारी समाजिक व्यवस्था का ताना बाना, अव्यवस्थित है।
कभी हमारे समाज का संचालन ग्यानवान, विचारवान सचरित्र साधों के द्वारा होता था।
जिनके कुछ नियम कायदे थे।
पहले परसाद माफक और खालसा हर किसी से नहीं लिया जाता था।
आज गुटबंदी का बोलबाला है।
आज हमारी सोंच है, सिजल होनी चाहिये, पैसा आना चाहिये, चांहे कहीं से आये।
कभी हमारे समाज में खानपान और चरित्र की प्रधानता थी।
आज पैसे की प्रधानता है।
कभी ग्यानबार्ता (बतकई)ग्यानवान और त्यागी साध सुनाते थे।
जिनका प्रभाव इतना था कि कोई अनैतिक काम करने बाला, समाजिक कामों में पीछे बैठता था।
आज अनैतिकता का बोलबाला है।
समाजिक मान्यतायें धरासायी होती जा रही हैं।
छोटी छोटी बातें पर परिवार टूट रहे है।
खानपान और चरित्र, इनके बारे में हमने बोलना या सोंचना ही बन्द कर दिया है।
हम आधुनिकता की अंधी होड में, भूलते जा रहे हैं अपनी पुरानी परंपराओं को।
तलाक रूपी भयानक अजगर ने समाज में प्रवेश पा लिया है।
अगर समय रहते हमारी चेतना बापस नहीं लौटी, तो हम कल्पना करें, हमारा प्यारा समाज कहाँ होगा।
पार्टीवंदी, गुटवंदी, इन सबसे ऊपर होता है समाज।
क्योंकि समाज ही व्यक्ति की पहिचान है।
हर काम के लिये हमारे पास समय है, इसके लिये भी समय निकालो।
अगर समाज में पनप रही बुराइयों को रोकना है तो, आगे बढो और एक जुटता से मुकावला करो।
सत्तनाम ।
राजमुकट साध
किसी ज्वलंत समस्या पर टीका टिप्पडी करना या लेख लिखना अच्छी बात है।
मगर यह कोई समाधान नहीं है।
आज हमारी समाजिक व्यवस्था का ताना बाना, अव्यवस्थित है।
कभी हमारे समाज का संचालन ग्यानवान, विचारवान सचरित्र साधों के द्वारा होता था।
जिनके कुछ नियम कायदे थे।
पहले परसाद माफक और खालसा हर किसी से नहीं लिया जाता था।
आज गुटबंदी का बोलबाला है।
आज हमारी सोंच है, सिजल होनी चाहिये, पैसा आना चाहिये, चांहे कहीं से आये।
कभी हमारे समाज में खानपान और चरित्र की प्रधानता थी।
आज पैसे की प्रधानता है।
कभी ग्यानबार्ता (बतकई)ग्यानवान और त्यागी साध सुनाते थे।
जिनका प्रभाव इतना था कि कोई अनैतिक काम करने बाला, समाजिक कामों में पीछे बैठता था।
आज अनैतिकता का बोलबाला है।
समाजिक मान्यतायें धरासायी होती जा रही हैं।
छोटी छोटी बातें पर परिवार टूट रहे है।
खानपान और चरित्र, इनके बारे में हमने बोलना या सोंचना ही बन्द कर दिया है।
हम आधुनिकता की अंधी होड में, भूलते जा रहे हैं अपनी पुरानी परंपराओं को।
तलाक रूपी भयानक अजगर ने समाज में प्रवेश पा लिया है।
अगर समय रहते हमारी चेतना बापस नहीं लौटी, तो हम कल्पना करें, हमारा प्यारा समाज कहाँ होगा।
पार्टीवंदी, गुटवंदी, इन सबसे ऊपर होता है समाज।
क्योंकि समाज ही व्यक्ति की पहिचान है।
हर काम के लिये हमारे पास समय है, इसके लिये भी समय निकालो।
अगर समाज में पनप रही बुराइयों को रोकना है तो, आगे बढो और एक जुटता से मुकावला करो।
सत्तनाम ।
राजमुकट साध