साध का काम है कि वह सतगुर साहिब के हुकमों को पूरा पूरा मांनें।

*सतगुर का कहना......., 
             होय सही सै*।।
साध का काम है कि वह सतगुर साहिब के हुकमों को पूरा पूरा मांनें।
पूरा साध वही है जो सतगुर साहिब के हुकमों पर चलकर सतजुग में प्रवेश कर सके, या वह जो प्रवेश कर पार उतर गये।
आद में नौसाधों ने चार पुजारों को पांत में न लेकर, गुरु के हुकम की अवेहलना की थी।
 परिणाम सरूप, उनके चार   जुग यों ही बीत गये एक दूसरे से युद्ध करते हुये।
चौथे जुग में एक समय ऐसा भी आया जब सन्त अपने मन में बैठे, इस बैर भाव के कारण नाम ग्यान से बंचित हो गये।
"जब कलजुग नै कहर कमाया सो अबगत कौ नाय सुहाया"।
उनकी पुरवली कमायी थी।
अबगत आप ने,सतगुर साहिब को भेजकर उन पर विशेष कृपा महर की।
सन्त कह रहे हैं।
"पहिर बारीख मैं महर सतगुर करी, आन कै साध सूता जगाया"।
उनका समय खराब चल रहा था, उनसे नाम ग्यान छूट गया था, ऐसे कठिन समय में,  सतगुर साहिब ने आकर, उन्हें नाम और ग्यान फिर से दिया।
 उन्होंने गुरू के पूरे हुकम मांने, पूरी करनी की।
सतगुर साहिब नें उन्हें भवसागर के पार उतार दिया।
हम सोंचे, और ध्यान दें, कि हम अपने रोजमर्रा की जिन्दगी में कितनी हुकम अदूली कर रहे हैं।
हमारा क्या होगा, क्या हमने इस बारे में कभी सोंचा हैं।
अगर नहीं सोंचा, तो अब सोंचो।
 अभी समय है, सोंचो, समझो, ओर सुधार करो।
सतगुर साहिब का संबिधान सबके लिये एक समान है।
सत्तनाम ।
राजमुकट साध