हर जुग जो हमारे अन्दर हो रहा है
Nirwan GHYAN me kaha hi
कलजुग कालौ बहुत ही बरती त्रेता आदू सुधसी । द्वापर माही भाउ ताउ सी सतजुग है निहकलक की।।
कलजुग बह कहा है जिसमें केबल हम की कार होती है कुछ नहीं सूझता है
त्रेता मे कुछ सुध रहती है ओर दोनों परिस्थिति रहती है
द्वापर में भाव में बहुत तलब ब तड़प मालिक के लिये
सतजुग में साधो में कोइँ भी संकल्प बुरे नहीं आते ग़लत सोच का ही अन्त मालिक कर देते है ( पडगीता में बहुत ख़ुलासा है )
Nirwan GHYAN me kaha hi
कलजुग कालौ बहुत ही बरती त्रेता आदू सुधसी । द्वापर माही भाउ ताउ सी सतजुग है निहकलक की।।
कलजुग बह कहा है जिसमें केबल हम की कार होती है कुछ नहीं सूझता है
त्रेता मे कुछ सुध रहती है ओर दोनों परिस्थिति रहती है
द्वापर में भाव में बहुत तलब ब तड़प मालिक के लिये
सतजुग में साधो में कोइँ भी संकल्प बुरे नहीं आते ग़लत सोच का ही अन्त मालिक कर देते है ( पडगीता में बहुत ख़ुलासा है )