*कबीर* , *काया* *तेरी* *है* *नहीं* , *माया* *कहाँ* *से* *होय* । *भक्ति* *कर* *दिल* *पाक* *से* , *जीवन* *है* *दिन* *दोय* ...
*अर्थ* :-
*कबीरदास* *जी* *कहते* *हैं* कि यह शरीर, जिसे तुम अपना मानते हो, वास्तव में तुम्हारा नहीं है। यह तो नश्वर है, और एक दिन इसे मिट्टी में मिल जाना है। जब शरीर ही तुम्हारा नहीं है, तो फिर इस शरीर से प्राप्त की गई माया (धन-दौलत, संपत्ति) तुम्हारी कैसे हो सकती है? इसलिए , सच्चे और पवित्र हृदय से मालिक की भक्ति करो क्यूंकि जीवन बहुत छोटा है, यह केवल दो दिनों का खेल है।
इस क्षणभंगुर जीवन में, हमें मालिक की भक्ति करनी चाहिए, ताकि हम इस जीवन और मृत्यु
चक्र से निजात पा सके lI