यदि निंदक अड़सठ तीर्थों में शरीर को मल-मलकर स्नान करे

1*कबीर* *बीजक* 

 *अड़सठ* *तीरथ* *निन्दक* *न्हाई* , *देह* *पलोसे* *मैल* *न* *जाई* । *छप्पन* *कोटि* *धरती* *फिरि* *आवै* , *तो* *भी* *निन्दक* *नरकहिं* *जावे* ।।

यदि निंदक अड़सठ तीर्थों में शरीर को मल-मलकर स्नान करे, तो भी उसके मन का मैल नहीं जा सकता। पृथ्वी की चाहे वह छप्पन करोड़ बार परिक्रमा कर आए, तो भी पराए की निंदा करने वाला नरक में ही स्थान प्राप्त करेगा।