गुरू का शब्द सुख का सागर हैं

गुरू का शब्द सुख का सागर हैं। ऐसे ज्ञान सागर मे से जल लेकर काया रूपी घर आँगन को निशदिन धोना पौंछना अतिआवश्यक हैं।

जिस काया रूपी किले की दीवारें सच्चे गुरू के ज्ञान से ओतप्रोत हों जाए तो कौन भेद सकता हैं ?
ऐसी दीवारों को चुनने के लिए  शील संतोष रुपी मरहम (मशाला) की हीं आवश्यकता हैं।
कच्चे मशाले की दीवारों का क्या भरोसा कब ढह जाए ?

सतगुर का ज्ञान गंभीर हैं पूर्ण विश्वास करके विनती अरदास और अमल करना अत्यावश्यक है।
मात्र बातचीत से नहीं क्रियान्वन करना(कही बात  को पूर्ण अन्जाम देना) हीं परिपूर्ण साधना हैं।