दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार, तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार

संत कबीर

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार, तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।

अर्थः इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है। यह मानव शरीर उसी तरह बार-बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता। इसलिए यह जो शरीर मिला उसका उपयोग मालिक से मिलने के लिए लगाओ उनके नाम ज्ञान से प्रेम करो तभी उनके शब्द की पहिचान होगी !!
करम बंधन में, बन्ध रहियो, फल की न तजियों आस कर्म मानुष का धर्म हैं यह दुनियां जान!!