चाह गई चिन्ता मिटी; मनुआ बेपरवाह।।

चाह गई चिन्ता मिटी; मनुआ बेपरवाह।। जिनको कछु न चाहिए ;सोई शाहंशाह।। कबीर जी कहते हैं कि चाह समाप्त होते ही चिन्ता मिट जाती है मनुष्य निश्चिन्त हो जाता है। जिस व्यक्ति को किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है वही सम्राट है। अर्थात संतोष ही परम वैभव है और संतोषी व्यक्ति ही धनवान है।। 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏