जीवन का सार

।।जीवन का सार।।

प्राणी अपने कर्म के अनुसार पैदा होता है और मर जाता है उसे उसके कर्मों के अनुरूप ही सुख दुख की प्राप्ति होती है। जो लोग किसी भी जीव को किसी भी प्रकार से कोई पीड़ा नहींं पहुचाते, ऐसे महात्माओं के हृदय में भगवान का वास होता है, यही हमारा धर्म सिखाता है संसार के सभी लोग इस आचरण को अपने जीवन में उतार लें तब  सबके दुख और दरिद्रता अपने आप दूर हो जायेंगे।

भगवान श्रीराम के राज्य में समस्त प्रजा अपने अपने वर्ण आश्रम के अनुरूप जीवन यापन करती थी, परन्तु उस समय वर्ण व्यवस्था जातिसूचक नहीं होती थी अपितु मनुष्य के कर्म उसका वर्ण निर्धारित करते थे, ईश्वर ने वर्ण व्यवस्था इसलिये बनाइ थी जिससे हर किसी की जीविका चलती रहे, उस वर्ण व्यवस्था में लोग किसी के भी कर्म को उसके अपमान या सम्मान का कारक नहीं मानते थे और अगर ऐसा नहीं होता तो भगवान राम शबरी के जूठे बेर क्यों खाते?

इस लीला से भगवान ने यही संदेश दिया है कि सभी जीव एक समान हैं और सबके भीतर मैं परमात्मा ईश्वर आत्मा के रूप में समान रूप से विराजमान हूं।

मनुष्य की सबसे बड़ी भूल यह है कि वह इस शरीर को ही आत्मा मान लेता है जबकि यह शरीर भौतिक वस्तु है जो प्रकृति से उत्पन्न होती है और उसी में मिल जाती है आत्मा अमर है जो अपने कर्मो के फलस्वरूप बार बार शरीर बदलती है।

मनुष्य की इच्छायें और महत्वकांक्षायें ही उसके द्वारा दूसरों को दिये दुख का कारण बनती हैं और इन सबके फल स्वरूप वो बहुत सा धन अर्जित करता है।

धनी लोगों में ये तीन दोष होते हैं १. धन(धन स्वयं एक दोष है) २. धन का घमन्ड ३. धन का लालच

जबकि निर्धन लोगों में धन के पहले दो दोष(धन और धन का घमन्ड) नहीं होते, केवल तीसरा दोष होता है धन का लालच और वह भी सत्पुरूषों के समागम से समाप्त हो जाता है।

जो मनुष्य भूखा सोया हो वह जानता है कि भूखा सोने का दर्द क्या होता है अतः वह धनी मनुष्यों की अपेक्षा ज्यादा प्रयास करता है कि किसी दूसरे के साथ ऐसा न हो।

अतः इच्छायें, महत्वकांक्षायें और धन ही एक जीव को दूसरे से भेदभाव करने पर मजबूर करते हैं और सामाजिक असन्तुलन को बड़ाते है।

बड़े से बड़े राजाओं की मृत्यू के बाद उनके शरीर की तीन ही गतियां होती हैं या तो जला दिया जाता है, या जमीन में गाड़ दिया जाता है और या फिर चील कौओं का भोजन बन जाता है, इसलिए इस नाशवान शरीर के मोह में पड़कर दूसरे मनुष्यों और जीवों से बैर पालना तो मनुष्य की सबसे बड़ी मूर्खता है।