इंसान हमेशा यही सोचता है कि उसके द्वारा भोगे गये

इंसान हमेशा यही सोचता है कि उसके द्वारा भोगे गये सुख, दुःख, परेशानियां, कष्ट उसके कर्मों के हिसाब से आखिर क्यों नहीं होते हैं..??
वो अच्छा करता है तब भी दुःख का भागीदार बनता है...कोई बुरा करता है तो सुखों का हिस्सेदार बन जाता है...
ऐसा नहीं है असल में प्रारब्ध व्यक्ति का पीछा तब तक नहीं छोड़ता...जब तक कि वो हिसाब बराबर नहीं कर लेता है...
बाग़ में लगे हुए सुन्दर सुन्दर मीठे फलों को व्यक्ति की आँख देखती है...पैर चलकर पास जाते हैं,हाँथ आगे बढ़कर तोड़ता है,जीभ स्वाद लेती है और उसी मीठे फल को पेट रख लेता है...एक ही फल पर हर अंग का अपना अपना अलग कार्य होता है...
उसी समय माली डंडा लेकर आता है..देखकर पीठ में डंडे लगाता है...
इसी बात को एक संत से एक आदमी ने पूछ ही लिया...महाराज पीठ की क्या गलती थी..??
देखा आँख ने,लेकर गए पैर, तोड़ा हांथों ने,स्वाद जीभ ने लिया,रखा पेट ने और डंडे खाये पीठ ने...आखिर पूरे मामले में पीठ की गलती ही क्या थी...??
संत बोले...जो तुमने कहा उस पूरी बात में ही सार है...
डंडे खाये पीठ ने पर रोया कौन..??
वही आँखें जिन्होंने फलों को देखा...
उसी की गलती थी जो उसने देखा..नही तो कुछ होता ही नहीं...
अर्थात प्रारब्ध कर्मों का हिसाब जरूर लेता है...
हम प्रायः सोच भले ही लें लेकिन ऐसा नहीं है...हम जो करेंगे उसे भोगना हमें ही होगा..भले इस जन्म में या देरी से अगले जन्म में...
क्यों कि प्रारब्ध व्यक्ति का साथ नहीं छोड़ सकता जब तक उसका हिसाब बराबर नहीं हो जाता...!!!