कैसे बने एक कुशल वक्ता

कैसे बने एक कुशल वक्ता

वार्तालाप हमारे जीवन की वो कला है जो हमें दूसरों के दिलों पर राज करना सिखाती है. यह एक ऐसी कला है जिससे आप किसी भी व्यक्ति की बातचीत सुन कर उसके विचार या भावनाओं को ही नही, बल्कि वक्ता के नैतिक अवस्था का भी अनुमान बड़ी आसानी से लगा सकते है. लेकिन जो लोग इस कला से अंजान है, वे न तो खुद के व्यक्तित्व को सँवार पाते है और न ही अपने कार्य में सही मुकाम तक जा पाते है. जबकि हर मनुष्य अपने जीवन में सफलता पाना ज़रूर चाहता है. जिस कारण आज समाज में जहाँ देखो अंधविश्वास इन साधु, फकीर या तांत्रिक के रूप में नज़र आता है. कोई नौकरी के लिए, कोई प्रसन्नता के लिए तो कोई अपने कार्य में तरक्की के लिए, किसी न किसी रूप में इन अंधविश्वासों में फ़स के अपना समय और पैसा दोनों खर्च करते रहते है. काश! हम सब इस बात को विश्वास के रूप में ले पाते कि जितनी भी शक्तियाँ इस ब्रह्माण्ड में है वो सब हमारे अंदर जन्म से है और उन सभी शक्तियों में सर्वप्रधान वार्तालाप की शक्ति है.

अगर हम अपनी इस शक्ति के निखार पर कार्य करे तो हमारी पहचान लाखों की भीड़ में भी अलग होगी. आज भी दुनिया में ऐसे कई लोग है जो मंच पर जाकर भाषण देने के नाम से ही घबराने लगते है, भीड़ को देख कर डरने लगते है जिससे लोगों के बीच हमारा मज़ाक बन जाता है. अच्छे शिक्षक, माता-पिता, दोस्त, सेवक, दुकानदार, व्यापारी या अच्छे एजेंट वो ही होते है जो अपनी बात को सामने वाले के समक्ष उत्तम ढंग से रख पाएं.

तो आइये इस लेख के माध्यम से हम कुछ बिंदुओं पर ध्यान दे और अपनी वार्तालाप की कला में निखार ला पाएँ. जिससे हमारे व्यक्तित्व में भी कुछ निखार आ पाएं.

1. उत्तम वार्तालाप का मुख्य नियम :- हम यह बात कदापि सिद्ध करना नही चाहेंगे कि जो ज़्यादा बातचीत करता है वही श्रेष्ठ वक्ता होता है क्योकि संसार में समझदारी और बुद्धिमत्ता का भी सम्मान अतुलनीय है. जिसके पास कोमल, मधुर व योग्य शब्दों का भंडार न हो, तो वो सब गुण होते हुए भी दिलों का राजा नही बन सकता. फिर चाहे उसके पास कितनी भी धनसंपदा या ताक़त आदि क्यों न हो. जिसकी बातचीत के लहजे में नम्रता, मिठास, प्रसन्नता, दया और प्रोत्साहन होता है असल मायने में वो व्यक्ति ही जादूगर वक्ता होता है.

इस नियम के अंतर्गत यह मुख्य बात आती है कि हमें व्यर्थ की बातों का परहेज करना चाहिए. बात उतनी ही हो जिससे आपके उद्देश्य की पूर्ति हो जायें. क्योकि वार्तालाप जितना संक्षिप्त होगा वो उतना ही आकर्षक व प्रभावशाली होगा.
शेक्सपीयर का यह कथन था :- ”संक्षिप्तता बुद्धिमत्ता की आत्मा है.” जरूरत से ज़्यादा बोलने वालो को यह गर्व होता है कि लोग उन्हें सुन रहे है जबकि लोग ऐसा दिखावा करते है और मन ही मन उस वक्ता को मूर्ख समझते हुए हँसते है. तौल-मौल के बोल का पालन करे.

2. तैयारी कर के जायें :- अगर आप कोई स्पीच देने जा रहे है तो आपको जिस भी विषय पर बोलना हो उसकी अच्छे से तैयारी होनी बहुत ज़रूरी है क्योकि भाषण देने के दौरान अटकना एक अच्छे वक्ता की पहचान नही है. अच्छी तैयारी के लिए आप अपने आप को पर्याप्त समय दे. अख़बार, टी०वी०, वीडियों या इंटरनेट का सहारा ले, हो सके तो अपने भाषण को रिकॉर्ड कर के सुन ले इससे आपको मदद मिलेगी की आपने कहाँ क्या गलत्तियाँ की है.

आपके स्पीच के विषय का कंटेंट बहुत ही आकर्षक और शानदार होना चाहिए. आप यह बात कतई न भूले, चाहे आप कितने ही अच्छे वक्ता क्यों न हो अगर आपका विषय कंटेंट अच्छा नही है तो लोग आपकी स्पीच में मज़ा नही लेंगे.
बेंजामिन फ्रैंकलिन का यह विचार था :- ”तैयारी करने में फेल होने का अर्थ है फेल होने के लिए तैयारी करना.”

3. दृढ़ निश्चय के साथ जायें कि आप एक सफल वक्ता है :- हमेशा अपने आप को विश्वास दिलाते हुये दिमाग को यह संकेत दे कि आप एक सफल वक्ता है क्योकि आप जैसा अपने दिमाग में सोचते है परिणाम भी उसी अनुरूप में आता है. आप अपने दिमाग को जिस कार्य दिशा की ओर संकेत देते है तो आप कार्य भी वैसा ही करने लग जाते है, मान लीजिए आपने बार-बार अपने दिमाग को यह संकेत दिया की आप असफल है तो निश्चित ही आप असफल होंगे. इसलिए अपने मन और मस्तिष्क को हमेशा सफलता और आत्मविश्वास का संकेत देते रहिये जिससे आप प्रसन्न रहेंगे. अपने आप को कभी भी कमजोर न समझे कभी भी अपने आप को हारा हुआ न माने.

विवेकानंद जी ने कहाँ था :- ”किसी चीज़ से डरो मत. तुम अद्धभूत काम करोगे. यह निर्भयता ही है जो क्षण भर में परम आनंद लाती है.”
आत्मविश्वास के साथ खुद की बात को श्रोताओं के सामने प्रस्तुत कीजिये, निश्चित ही सफलता आपके कदम चूमेगी और आपका स्वागत श्रोताओं की तालियों से किया जायेगा. इस बात का हमेशा ध्यान रखे – ”खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है.”

4. बार-बार बात को दोहरायें नही :- बातचीत या भाषण के दौरान आप अपनी बात को बार-बार दोहरायें नही. कुछ लोग वार्ता के दौरान – जैसे की, मेरा मतलब, कई लोग आदि ऐसे शब्दों को बार-बार दोहराते ही रहते है. मान लीजिये आप को दस मिनट की समय अवधि दी गई है और उस समय में आप ऐसे शब्दों को ही दोहराते रहे तो आपकी वार्ता या भाषण पूरा कैसे होगा? आपने जिस उद्धेश्य से स्पीच शुरू की थी वो तो अधूरी ही रह जायेगी और श्रोताओं का ध्यान भी मूल बात से हट कर आपके दोहराने वाली आदत पर चला जायेगा फिर वे कुछ भी समझ नही पायेंगे. बात को बार-बार दोहराने से लोगों के बीच हमारे व्यक्तित्व पर भी बुरा असर पड़ता है.

5. वार्तालाप को रोमांचक बनाए :- इस बात पर विशेष ध्यान देना होगा कि वार्ता या भाषण के दौरान आपके बोलने का तौर-तरीका बेहद रोचक होना चाहिए. जब श्रोता एक वक्ता की बातों में मग्न हो जायें तो असल मायने में वो एक कुशल वक्ता है. आपकी बातचीत अन्य व्यक्ति की पसंद, शिक्षा व उसके स्वभाव के अनुरूप हो. जब आप अपने श्रोताओं को दोस्ताना माहौल देंगे और उनकी समस्या या व्यापार की बात करेंगे तो श्रोता कभी भी बोरिंग फील नही करते. कुछ किस्सें आप अपने सुनाये कुछ उनकी जिंदगी से जुड़ी बातें करिये, यह सब जब आपके बोलने के तौर-तरीके में शामिल होगा तो श्रोता बड़ी आसानी से आप को अपना लेते है और अंत तक आपकी स्पीच सुनता है जो की एक वक्ता की बहुत बड़ी उपलब्धि होती है. यदि आप संस्थाओं, श्रोताओं या समाज की किसी विशिष्ट प्राप्ति के बारे में उनके सामने चर्चा करते है, तो प्रतिक्रिया में सुनने वालों के मुँह खुले रह जाते है. क्योकि वे यह जान के आश्चर्य करते है की उनकी ख्याति भी दूर-दूर तक है. वार्तालाप या भाषण का सिलसिला इतना रोमांचक होना चाहिए कि हर श्रोता के मुख पर एक संतुष्टि का भाव हो.

6. बिना देखे भाषण दे :- यह गुण कुशल वक्ता का मुख्य गुण होता है. आपको जो भी श्रोताओं के सामने व्यक्त करना है उसकी छवि स्वयं के दिमाग में बना ले और निर्भय हो के पूरे भाषण को दिल से बोले. अगर आपकी स्पीच कुछ लंबी है तो आप कुछ मुख्य बिंदुओं को अवश्य लिख कर ले जायें. लेकिन उसका अभ्यास ऐसा करके जायें जिससे सुनने वालों को यह लगे कि आप बोल रहे है पढ़ नही रहे. बिना देखे बोलने की आदत आपको एक कुशल वक्ता की पहचान दिलाती है. कभी किसी वक्ता की नकल ना करे जो भी बोले पूरी तैयारी के साथ दिल से बोले. लेकिन, आप बिना देखे अगर अच्छा नही बोल पा रहे है तो सही-सही देख कर ही बोले, क्योकि बोलते वक्त आपका सहज होना अति आवश्यक है. छोटे-मोटे अवसरों पर बिना देखे बोलने की कोशिस करते रहे, नित्य अभ्यास से कुछ भी असंभव नही. धीरे-धीरे आप देखेंगे आप इस कला में पारंगत हो गये है.

7. निजी समस्या को दूर रखे :- आपके साथ आपकी कुछ भी समस्या रही हो अपनी समस्या को कभी भी व्यक्त ना होने दे क्योकि समस्याएँ किसके जीवन में नही होती. श्रोता अपना कीमती समय निकाल के कुछ अच्छा और तनावरहित वक्ता को सुनने आते है. निजी समस्याओं को अपने कार्य से परहेज रखते हुए पूरे जोश के साथ श्रोताओं को उत्साहित कीजिए. इस बात को सदा याद रखे कि आप श्रोताओं की वजह से ही मंच पर है. इस वजह से आपका पहला कार्य है प्रसन्नचित हो के श्रोताओं की उम्मीदों पर खरा उतरना. जो वक्ता बड़ी-बड़ी बातें करता है वो कभी भी सुनने वालों पर असर नही डालती, जबकि बड़ा व्यक्ति वो होता है जो ज़मीन से जुड़ी बातें करता हो, ऐसा वक्ता समाज में अपने नाम के साथ हर वो मुकाम हासिल करता है जो वो करना चाहता है. अपनी बात को एक सामान्य व्यक्ति की तरह पेश करे.

8. वार्तालाप की शुरुआत कभी माफ़ी से न करे :- कई लोग कुछ बोल पाये उससे पहले ही घबरा जाते है और अपने आपको कमजोर महशुस करने लगते है, फिर अपनी गलती को सुधारने के लिए ‘माफ़ कीजिए’ जैसे शब्दों से बोलना शुरू करते है. कई-कई लोग तो अपनी बात को ऐसे भी कहते है, ”मैं तो यहाँ आने के काबिल ही नही था लेकिन आप सब ने फिर भी मुझे यहाँ बुला कर इतना सम्मान दिया, वगैरह-वगैरह.” अगर आप भी इस तरह से बोलेंगे तो आप श्रोताओं के साथ-साथ खुद का समय भी बर्बाद करेंगे. जब तक एक वक्ता में जोश और उत्साह नही होगा तो श्रोताओं का आपके प्रति रुझान कैसे होगा? आपको जिस विषय पर बोलने के लिए बुलाया गया है उस पर बोलिये और विदा लीजिए. किसी कारण वश आपको माफ़ी माँगनी भी पड़े तो अपनी बात को सरल शब्दों में भाषण के अंत में कहे लेकिन माफ़ी से भाषण या वार्तालाप की शुरुआत ना करे.

9. गलती से घबराएँ नही :- दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नही जिससे कभी कोई गलती ना हुई हो. मनुष्यों से गलती होना स्वभाविक है. बस एक बात का ध्यान रखे स्पीच के वक्त अगर आप कहीं अटक भी जाते है या व्याकरण (संबंधी) कोई गलती हो भी जाती है तो आपको बड़ी होशियारी के साथ उस परिस्थिति को अपने बोलने के अंदाज से छुपाना आना चाहिए. ऐसे हालात में आप अपनी गलती को मज़ाक का रुख़ भी दे सकते है या सरल शब्दों में ‘माफ़ कीजिए’ कह कर अपनी बात को आगे बढ़ा सकते है. ऐसे में कोई भी आपकी गलती पर ध्यान नही देगा. क्योकि इस बात से कोई भी अनभिज्ञ नही कि मंच पे जाकर बोलना कोई आसान काम नही होता. ऐसे में छोटी चूक होना कोई बड़ी बात नही है. अपनी वार्ता या भाषण में एक बात का विशेष ध्यान रखे कभी किसी व्यक्ति की निंदा या आलोचना ना करे.

किसी ने क्या खूब कहाँ है – ”कमान से निकला तीर और ज़ुबान से निकले शब्द कभी वापस नही आते.”

किसी की कमियों को दर्शाने से अच्छा है आप उन कमी को दूर करने के उपायों पर श्रोताओं का ध्यान केंद्रित करे. यह श्रोताओं को भी अच्छा लगेगा. फिर आपकी छोटी-मोटी चूक पर किसी का भी ध्यान नही जायेगा. इसलिए ”तौल-मौल के बोल” वाली कला को अपनाए और घबराएँ नही अपनी बात को पूर्ण तर्क संगत के साथ समाप्त करे.

10. समय अवधि का रखे ध्यान :- समय का ध्यान रखने का मतलब होता है आप समय की महत्ता को समझते है. कई बार ऐसा होता है, वक्ता के स्पीच की शुरुआत तो शानदार होती है, लेकिन अपनी बात को इतना खिचता चला जाता है कि वक्ता को समय का भी ख्याल नही रहता. ऐसे में श्रोताओं का बोर होना स्वभाविक है. तौल-मौल के अपनी स्क्रिप्ट शानदार बनाये और कम शब्दों में अपनी बात को समयनुसार पूरी करे. समय का ख्याल रखना एक अच्छे वक्ता का हुनर होता है. जो वक्ता अच्छी शुरुआत के साथ सही समय पर अपनी बात को पूर्ण विराम देना भी जानता हो.

11. शुक्रिया कहना कभी ना भूले :- जिस तरह वार्तालाप की शुरुआत रोचक होनी चाहिए, ठीक उसी तरह वार्तालाप का अंत भी प्रभावशाली होना चाहिए. स्पीच का अंत इतना जानदार हो कि लोग खड़े होकर जोश और तालियों के साथ आपका सम्मान करते हुए अच्छा(गर्व) महशुस करें. सालों तक लोग आपको याद रखे उसके लिए स्पीच के अंत में आप किसी शायरी, चुटकुले या किसी व्यक्ति विशेष के विचार का भी उपयोग कर सकते है. क्योकि स्पीच या वार्तालाप का अंत सकारात्मकता के साथ हो तो वो पल श्रोताओं के लिए भी यादगार पलों में शामिल हो जाता है. अंत में सबसे ज़रूरी यह है कि आप उन सभी आयोजकों को शुक्रिया कहना ना भूले जिन्होनें आपके प्रोग्राम को व्यवस्थित बना कर रखा, जैसे कि स्पॉंसर, आयोजक, श्रोताओं आदि के सहयोग के लिए उन्हें धन्यवाद जरूर कहे. एक अच्छे वक्ता का यह व्यक्तित्व लोगों के दिलों को जीतने का काम करता है, इसे कभी ना भूले.

12. निरंतर अपने ज्ञान को बढ़ाएं :- सुकरात की यह एक पंक्ति अपने आप में एक संपूर्ण उत्तर है – ”सच्चा ज्ञान इसी में है कि आप कुछ नही जानते है.” जब हमारे अंदर यह भाव होगा तभी हम अपने ज्ञान को निरंतर बढ़ा पायेंगे. ज्ञान वृद्धि के लिए अच्छी-अच्छी पुस्तकें व पत्रिकाओं आदि का अध्यन करते रहना चाहिए. जिससे आप अपने ज्ञान, विचार, व्यवहार, चरित्र और शब्द भंडार में अधिक वृद्धि कर पायेंगे. अध्यन के दौरान अगर आपको कुछ अच्छा लगे तो उसे तुरंत नोट कर ले, जिससे आपकी वार्तालाप की कला में बहुत सुधार होगा. निरंतर ज्ञान अर्जन करते रहने से देश-दुनिया में होने वाली सभी खबरों पर हमारी पकड़ रहती है. फिर इन्हीं जानकारियों को जब आप अपने भाषण में उतारते है, तो श्रोताओं को भी अच्छा महशुस होता है कि यहाँ कुछ नया सुनने को मिला. ”अन्थोनी जे डी.’ एंजेलो” का यह विचार आपको सब कुछ समझा देगा – ”सीखने के लिए एक जुनून पैदा कीजिये, यदि आप कर लेंगे तो आपका विकाश कभी नहीं रुकेगा.” अंत में हम यही कहना चाहेंगे कि हमें हमारा ज्ञान सीमित नही बल्कि असीमित दायरें में ले जाना है.

दोस्तों, आप चाहे कितने भी अच्छे वक्ता क्यों न हो सीखना कभी बंद न करे, निरंतर अभ्यास, तैयारी, मेहनत, लगन और नम्रता से आप सिर्फ़ उच्च स्तर के वक्ता ही नही बल्कि दुनिया का कोई भी मुकाम पा सकते है. ”पहले सोचो, फिर बोलो.” यह बात जितनी पहले सार्थक थी उतनी आज भी है. इसका ध्यान हमेशा रखे. तो चलिए इन सभी नियमों पर गौर करते हुए क्यों न आप भी एक अच्छे वक्ता की श्रेणी में शामिल हो जायें. हमने इस लेख से एक छोटी सी कोशिश की है कि हम आपको एक अच्छा और कुशल वक्ता बनाने में मदद कर पाएं.

आपको यह लेख कैसा लगा? ज़रूर बताएं. आपकी प्रतिक्रिया हमारा उत्साह बढ़ाती है और हमें ओर भी बेहतर होने में मदद के साथ प्रेरणा भी देती है जिससे हम और भी अच्छा लिख पाएं.

“क्या आप असफलता के कारणों को जानते है?”