दुःख के बारे में

दुःख के बारे में इस विषय पर कुछ बिचार मन में आये सो व्यक्त कर रहे हैं

१. संसार मालिक ने नहीं बनाया। मालिक ने तो धरन आकाश बनाये पञ्च तत्व के साथ। संसार नाम तो इसको मनुष्य ने दिया (संसय का आसार) दुःख सुख का आभास तो मनुष्य को उसकी मानसिकता के आधार पर होता है। करनी के हिसाब से जैसी उसकी मानसिकिता हो जाती है बैसि ही दुःख सुख की अनुभूति होती है। जितना जादा स्वार्थी बाह बना उतना  उसका मस्तिष्क विकृत हो गया। जब बर्दास्त के बाहर हो गया तब विरक्ति मन में आयी। जब तक स्वार्थ पूर्ति होती रही तब तक विरक्ति का बिचार मन में नहीं आया। ऐसे तो स्वार्थ महत्त्व पूर्ण हो गया। क्योंकि विरक्ति का आधार तो स्वार्थ की अपूर्ति  (अपूर्णता) दुःख का कारण हो गई।
२  गुरु का ज्ञान कहता है "स्वार्थ माही फेर परे" मालिक ने जो कुछ भी बनाया बाह दुःख का कारन कभी नहीं हो सकता। हम सब जानते है मालिक ने हमें बंदगी करने को बनाया है साथ में यह  काया और समस्त ब्रह्मांड बनाया जिसका समुचित का उपयोग करते हुए बाह उनके हुक्मों का  पालन कर सके। बिना स्वार्थ  के इसी कसौटी में खरा उतारते हुए बैराग(विरक्ति अहम से मुक्ति) को प्राप्त कर सके। (यहाँ  फल रूपी बैराग कहाया)

३. दुःख नहीं आवे इस लिए मालिक के नाम का जाप करें अथवा नाम का जाप उनके प्रेमी और दास बनने के लिए होना चाहिए। नाम का जाप किसी भी भाव के तहत हो हमेशा ही लाभकारी होता है। लेकिन दरसे माफक जब ही होगा जा उसमे दास भाव एवम प्रेम होगा।

4. दुःख का आभास अहम को रोकने की शक्ति नहीं लगती है बल्कि रोष को बढ़ने में सहायक होता है। अहम में कमी उसकी मज़बूरी के तहत होने लगती है। विरक्ति के भाव से नहीं।   

यह हमारे विचार मात्र हैं बाकि केवल मालिक जाने।

सत्तनाम