संसार में अगर दुखः न हो

संसार में अगर दुःख न हों

क्या कभी संसार से विरक्त हो सकेंगे ? मालिक को याद करने की क्या जरुरत महसूस होगी ? अहंकार की सीमा कहाँ तक पहुंचेगी ? परिवारों की स्थिति क्या होगी ?

सुख दुःख के योग का नाम संसार है।सुख हमें संसार में रमाने का काम करता है तो दुःख विरक्त करने में सहयोग करता है।तभी दादाजी (जगफूल नारायण साध) ने लिखा है दुःख ही वास्तविक सुख लाने बाली चीज है।अगर दुःख न हो तो संसार से विरक्त होने की सोच में भी नही आएगी और हमारा मन संसार में इस कदर लिप्त हो जाएगा कि संसार के अलावा कुछ भी दिखाई नही देगा।

मालिक की याद अभी भी सिर्फ दुःख महसूस न हों, इसलिये करते हैं ,मुक्ति तो बिरले चाहते हैं।दुःख न हो तो मालिक की जरुरत भी समाप्त हो जायेगी।हमें मालिक का नाम लेने के लिये कौन प्रेरित करेगा।दुःख ही वह शक्ति है, वह ऊर्जा है जो हमें मालिक की ओर धकेलती है।

दुःख ही हमें अहंकार के चंगुल से निकालने का काम भी करता है।दुःख ही वह शक्ति है जो अहंकार को सीमित करती है।अगर हमें संसार के सारे सुख प्राप्त हो जाएँ तो हमारा अहंकार समुन्द्र के मानिंद हिलोरें मारने लगेगा और संसार में विनाश का कारण बन जायेगा अभी भी दुःख होते हुए भी अहंकार कब्जे में नहीँ है, कोई दुःख न होने पर मालिक से प्रार्थना भी न कर सकेंगे, न प्रार्थना की जरुरत महसूस होगी कि, मेरे मालिक अहंकार से मेरी रक्षा करो।

परिवार में भी विघटन की स्थिति हो जायेगी कोई किसी की नही सुनेगा, दुःख ही परिवार को बाँधकर रखने वाली चीज है, एक दूसरे की जरुरत दुःख ही महसूस करवाता है।एक दुसरे को सांत्वना देकर दुःख ही एक दूसरे को करीब लाता है।दुःख ही सुख की नींव बनकर सामने आता है।

दुःख सामने आने का सीधा मतलब है कि हम मालिक को भूल रहे थे, लेकिन मालिक को फिर भी हमारी याद है और वह हमें जगाने का काम कर रहे हैं।अगर हम सजग हैं, तो संसार के हर दुःख में सुख की आहट महसूस कर ही लेंगे। ग़ाफ़िल मनुष्य दुःख में सुख के आगमन का संकेत न ढूंढकर दुखी हो जाता है। मालिक से चेतना की मांग करें और सजग रहकर, दुःख में दुःखी न हों ,तो जीवन के रहस्य की गांठे, खुलती ही चली जाएँगी।
प्रयास तो हमें ही करना है।