आत्मा को जानना

सृष्टि चक्र के आदि, मध्य , अंत इन तीन कालो का ज्ञान  जानना ही तीसरा नेत्र खुलना है।तीसरा नेत्र कोई स्थूल नेत्र नहीं बल्कि यह ज्ञान का नेत्र है।

स्व कीअनुभूति से ही परमात्म की अनुभूति हो सकती है।

आत्मा और परमात्मा एक नहीं है।आत्मा परमात्मा का अंश नहीं वंश है।

सत्य ज्ञान के दाता परमात्मा खुद है ।

सद्गति दाता, मुक्ति -जीवन मुक्ति के दाता, सत्य की राह दिखाने वाला, दुखहर्ता,सुखकर्ता,सच्चा सदगुरु एक ही परमात्मा है।

परमात्मा ही सब मनुष्य और जीव आत्माओं का पिता है।

परमात्मा ही सदा पवित्र है ,ज्ञान का सागर,प्रेम का सागर,शांति का सागर,सुख का सागर ,आनंद का सागर, विश्वकल्याणकारी है ।दिव्या गुणों और दिव्य शक्तियों का दाता है। वह सदैव देने वाला है।

राजयोग से आत्मा को परमात्मा से जोड़ा जाता हैं और उस विधि से आत्मा को शक्ति मिलती है।
ओम शांति।
ओम शांति का मतलब है
मैं एक आत्मा हु मैं शांत स्वरुप हूँ।
यह सिर्फ दो शब्द नहीं यह सत्य को अनुभव करना है।
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