हम नाम से क्यों नही लग पा रहे है!
क्यूंकि हम संसार की तरफ लगे है!
संसार में आकर्षण इसलिए है!क्योकि ये हमें आकर्षित लगता हैं!
हमें कभी इसकी कोई चीज़ पराई ही नहीं लगी !
सब वस्तु अपनी लगी!
यहाँ तक की अपना शरीर भी!
यहाँ की हर चीज़ से प्रेम है!
कभी मालिक से इतना प्रेम किया ही नहीं !
उनसे मिलने की प्रबल चाहना हुई ही नहीं!
कभी उन्हें तलब से बुलाया ही नहीं(आबो आबो गुरु जी हमारा ) यहाँ के सभी रिश्ते नाते अपने लगे पर ग्यान में आई है( पिताजी धनक माता मतिंगा),पिता हमारे धनीजी है और ग्यान हमारी माता है!
कभी अपने पिता से मिलने की, देखने की हम उमंग तो उठाऐ!
संतो ने तो नाता नाम से और नाम पीने वाले साधो से किया (नाता म्हारे नाम सै नर पेखी सै जी। शबद वबेकि सै जी।।)
और हम यही के नाते निभा रहे है!
सत्तनाम सही!
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हम नाम से क्यों नही लग पा रहे
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