*गत होयगी सत्तनाम सै,
सतगुर तंत बताया*
सतगुर साहिब ने, भवसागर की धार में टिके रहने, और इसे पार करने के लिये, तंत वस्तु, 'सत्तनाम', यानी 'सत्तअबगत' नाम दिया है।
'सत्तअबगत' नाम एक पुकार है, जिसके द्वारा हम अपने मन की बात, अपने मन का दुख सुख, अपनी फरियाद सृष्टिकर्त्ता तक पहुँचा सकते हैं।
"दरगे अरज पहुँची जी आदू साधां री अरदास"।
आद के बन्दों की अरदास इतनी प्रबल थी कि, जब उनके जीवन में कठिन समय आया, तो अबगत आप को भी नहीं अच्छा लगा, और जो अबगत आप को अच्छा न लगे, वह तो कभी हो ही नहीं सकता।
"जब कलजुग नैं कहर कमाया, सो अबगत कौ नाय सुहाया"।
"जुग ऊपर हुकमी सतगुर आया, हेला दै दै साध जगाया"।
अबगत आप के हुकम से, उनके हुकमी सतगुर साहिब नें भवसागर में आकर, कठिन समय से गुजर रहे संतों की मदत की।
"सतगुर इसम बताइया, अगम अगोचर माहिं"।
इसम, (नाम), 'सत्तअबगत'।
अगम, जो हमेंशां था, और हमेंशां रहेगा।
अगोचर, जो संतों की द्रष्टि से ओझल यानी ओट हो गया था,
सतगुर साहिब नें भवसागर में आकर, उन्हें फिर से वही नाम दिया।
'सत्तअबगत' नाम एक पतवार है, यह जब तक हमारे पास है, हमारी नैया भवसागर में ढ़ूब नहीं सकती।
"नाम का फुरमान ऐसा, जासै औतरे औतार"।
यही वह नाम है, जिसे जपकर संतों ने भवसागर पार किया।
जब तक ये नाम प्रानी के पास है, प्रानी, मनुष्य जन्म पाता रहेगा।
जपौ प्रानी 'सत्तअबगत'।
अमृतबानी, 'सत्तअबगत'।
सत्तनाम।(राजमुकट साध)।
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