संत कह रहे हैं कि जिसके जीवन का कोई लक्ष है

*ये लछ साध शब्द सै भेदी*
लछ,- यानी लक्षन।
लछ,- यानी लक्ष(निशाना)।
शब्द सै भेदी,- यानी सतगुर साहिब के हुकमों की जानकारी का होना।
संत कह रहे हैं कि, जिसके जीवन का कोई लक्ष है, जिसके पास लक्षन, यानी साधनायें हैं,
और जिसको सतगुर साहिब के हुकमों की पूरी जानकारी है, सही मायने में वही साध हैं।
'सत्तअबगत' नाम के लिय भी, निर्वान ग्यान में, शब्द ही आया है।
शब्द (नाम और ग्यान) से भेदी साध की पहचान है कि, उसके जीवन में कैसा भी कठिन दौर क्यों न हो, वह सदां शान्त रहकर, विवेक से काम लेगा।
संत, साध की पहचान बता रहे हैं,
  "जाकै अन्दर हो, जाकै अन्दर भिदी है सुफेदी"।
जिसके अन्तर मन में, पूरी तरह से ग्यान का उजाला हो, असल में वही साध है।
"शील संतोष रहै सत्त सेती, त्यागी द्रष्टा कैदी"।
जिसके पास शील होंगी, उसी का जीवन व्यापना रहित, और शान्त होगा।
जो हर परिस्थिती में खुश रहकर मालिक को धनकारा देगा, उसी के पास संतोष होगा।
जो भी है, उसी में संतोष करना और शान्त रहना, साध की सबसे बड़ी साधना है।
जिसकी द्नष्टि, संसारी विषय वासना की कैद से आजाद होगी, उसी की सोंच और मन में, ग्यान की परख पहचान होगी, वही सही से भगत मार्ग पर चल पायेगा।
जो सतगुर साहिब के हुकमों पर पूरी ईमानदारी से चल रहा होगा, उसी के पास 'सत्तअबगत' नाम का ठहराव  होगा।
अर्थात, वही निर्बिघ्न, और निर्बाध, 'सत्तअबगत' नाम जप सकेगा।
"सतगुर का कहा अमल मन माना, तौ दरसी लुग लाहेदी"।
जिसने सतगुर साहिब के हुकमों पर पूरी तरह से, मन लगाकर अमल किया, वही लाभान्बित हुये।
उन्होंने ही पूरे लाभ यानी मोक्ष प्राप्त की।
सत्तनाम।(राजमुकट साध)।