सच्चाई का दर्पण

**सच्चाई का दर्पण**
कभी हम अपने अन्तर मन में झाँके,
एक स्वतंत्र समीक्षक बन अपने मन में उठने बाले बिचारों का खुली निगाह से अबलोकन करें।
तब हम जिस सच्चाई से दो चार होंगे, असल में वही हैं हम।
तीरथ, वरत, और पत्थर की पूजा को छोंड़कर,
संसार के सारे अबगुण, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, भय, भरम, त्रश्ना, शंशा, चिंता, मान, क्या नहीं है हमारे पास।

" साध तौ सत्त शब्द भेदी, झूँठ सै नहीं काम"।
"परस पढ़ैं सत्त एक हैं, तुम देव कुबध कौ जान"।
सत्त,- सतगुर साहिब और उनका बताया 'सत्तअबगत' नाम।
परस जी संत कह रहे हैं कि,  इस संसार को बनाने बाले अबगत आप, उनकी ईच्छा सतगुर साहिब, उनका पंथ, और उनका नाम 'सत्तअबगत'  एक मात्र सच्चे हैं।
बाँकी सब मिटने, छुटने और फिर कभी दोबारा न मिलने बाले, झूँठे रिस्ते, नाते और सम्बन्ध हैं।
साध का काम है कि, वह कुबुद्धि का परित्याग कर, अपने को, गुरू के बताये, नाम और ग्यान से जोड़े।
"जासै कारज होय तेरा यही मन मैं जान"।
इस नाम से ही कारज बनेंगे, यह बात पूरी तरह से, मन में जान लेने से ही, हमारे मन को शांति प्राप्त होगी,
अन्यथा तरह तरह की मन को भ्रमित करने बाली, घुटन, बेचैनी, और उलझन से हम कभी पार नहीं पा सकते।
सत्तनाम।(राजमुकट साध)।