अहंकार और प्रेम एक साथ नही रह सकते

अहंकार एवम् प्रेम:-जिस आदमी के पास मै का स्वर होता हैं, उसके अंदर प्रेम का स्वर नही होता हैं।जिसके पास प्रेम का स्वर होता हैं, उसके पास मै का स्वर नही होता हैं।अहंकार और प्रेम एक साथ नही हो सकते
अहंकार भी अंधकार के भाँति होता है।वह प्रेम की अनुपस्थिति हैं।हमारे भीतर प्रेम नहि हैं, इसीलिए प्रेम का स्वर इतना उठा हुआ हैं।हर आदमी कहता हैं, मै प्रेम पाना चाहता हूँ, प्रेम करना चाहता हूँ।मैं का और प्रेम का कहि कोई सम्बन्ध नही हैं।मैं अहंकार की घोषणा हैं।और तो और मैं प्रार्थना करना चाहता हु?मैं परमात्मा को पाना चाहता हूँ, मैं मोक्ष पाना
चाहता हूँ।जहा मैं गिरा,वहीँ परमात्मा हैं।प्रेम हैं, मोक्ष हैं।प्रेम द्वार हैं परमात्मा का।अहंकार द्वार हैं अन्धकारक,प्रेम द्वार हैं प्रकाश का।जहा प्रकाश हुआ की अंधकार गया।ठीक उसी प्रकार जहा अहंकार गया की प्रेम का उदय हुआ।खोज अहंकार से शरू होंगी और प्रेम की उपलब्धि पर पूर्ण होंगी।।