जिन सत का शब्द पिछाना नहीं

*जिन सत्त का शब्द पिछाना नाहीं,
             ते बूढ़ गया भवसागर माँहीं*
सत्त का शब्द,- सतगुर साहिब की सीख।
और सतगुर साहिब का दिया 'सत्तअबगत' नाम।
दोनो के लिये ही आया है।
जिसने सतगुर साहिब के बताये, नाम और ग्यान को अपनाना तो दूर,
कभी जानने की कोशिश भी नहीं की,
उनके जीवन में एक दिन ऐसा आया कि, वह भवसागर में बूढ़ गये।
"शब्द सत्त का राख हिरदे, छाँड़ कुबध की बान, सतगुर का ग्यान गम्भीर है रे भाई, ध्रक संसार स्वान"।
ह्रदय में नाम ग्यान की जानकारी, और हर सांस पर 'सत्तअबगत' नाम का होना ही भगत मार्ग है।
बुराइयों का परित्याग कर, गुरू के हुकमों की गहराई (गम्भीरता) में डूब जाना, ही साध का धर्म है।
संत कह रहे हैं कि,
धिक्कार है ऐसे जीवन को,
जो संसार की, झूँठ से भरी, मनगड़ंत कहानियों को सच्च मानकर, अपने अमूल्य मनुष्य जन्म को योहीं बरबाद कर रहे हैं।
"मिलते सै मिल रमियां नाहीं, कहा आय जग कीता'।
जिसने सतगुर साहिब, और उनके बताये नाम ग्यान को नहीं समझा, उससे मिलकर नहीं चले, उनका जीवन अकारथ हो गया।
" सत्त समझा नहीं, गया अपूटा"।
सत्तनाम।(राजमुकट साध)।