जिसने सतगुर साहिब की सीख को भुलाकर,मनमानी की

*जिन सतगुर की सीख न मानी,
           ते भरम पड़ा चौरासी खानी*
सतगुर साहिब की सीख मेल,प्रेम, धीरज, और सृष्टिकर्त्ता अबगत आप की आश।
जिसने सतगुर साहिब की सीख को भुलाकर, मनमानी की,
वह अहंकार के मद में इतने गाफिल हो गये कि, एक दिन मालिक को ही भूल गये, और चौरासी में चले गये।
"सरा जहाँ जोरी नहीं, दीन जहाँ ही जान"।
जिनके बिचारों में सतगुर साहिब के ग्यान का प्रकाश है, वह किसी के साथ कभी जुल्म नहीं कर सकते।
जहाँ गुरू के ग्यान का प्रकाश है, दीन यानी धर्म भी वहीं है।
" सतगुर सीख बतामैं सच्चा, यही सीख चलौ रे बच्चा"।
हम सब सतगुर साहिब के बच्चा यानी बालक है, ("बालक बाबाजी रा दास")
सतगुर साहिब की सच्ची सीख ही, हम सबके लिये, उपयोगी है।
सीख को मानना, उसे अमल में लाना, उस पर चलना ही, एक सच्चे साध का धर्म है।
सीख को मानकर, उस पर चलना, या सीख नहीं मानना, उसकी अबहेलना करना, यह सब हमारे विवेक पर निर्भर है।
" समझैं तेई कहामैं साधू"।
जो सीख को समझते, और उस पर चलते हैं, वही साध हैं।
"समझा साध कसौटी सहै, प्रभू आगे भेद न कहै"।
जो सतगुर साहिब पर पूर्ण विस्वास रखते हैं, वह कष्ट पड़ने पर, कष्ट सह लेंगे,
मगर अपने मन की ब्यथा, किसी संसारी प्रभू, भगवान, या ढ़ोगी, पाखंडी, छलिया गुरुओं से नहीं कहेंगे।
साध का काम यही है कि, वह अपनी फरियाद, अपने मन की आश, सृष्टिकर्त्ता अबगत आप के सामने पेश करे।
"अबगत जोगी लगन लखैं"।
सत्तनाम।(राजमुकट साध)।