सीख दै कै सतगुर रमिया

*सीख दै कै सतगुर रमिया, पीछे बहुत बढ़ी है दुनिया"।
"उसी शब्द का करौ बिचारा, अश्लोक हुआ सम्पूरन सारा*
दुनियां बढ़ती रही, मगर सतगुर साहिब की सीख, जो आद में थी, वही चौथे जुग में रही, और आज भी वही है।
वही एक नाम 'सत्तअबगत' जो सतगुर साहिब ने आद में बंदगी करने के लिये, बंदों को दिया था,
वही नाम बिसर जाने पर, उन्हीं बंदों को, चौथे जुग में दुबारा दिया।
दुनियां कितनी भी बढ़ी, लेकिन गुरू की सीख, मेल,प्रेम, धीरज, और अबगत आप की आश,
जो गुरू ने आद में बताई थी, चौथे जुग में, नाम ग्यान से बंचित संतों को जाग्रत करके, फिर से बताई।
आज भी नाम ग्यान की सीख वही है, और उसकी सिपत भी वही है।
सीख का लाभ भी ,वही संत प्राप्त कर सके, जिसनें गुरू की सीख को बिचारों में बसा कर, उसका अनुशरण किया।
आज भी लाभ पाने के लिये, गुरू की सीख का अनुशरण ही, एक मात्र उपाय है।
"गुरू के शब्दां मन दै हालौ, सतगुर जीरी सीख बिचारौ"।
'सत्तअबगत' नाम कर्ता को पुकार लगाने, सुमरन करने,याद और फरियाद करने, ध्यान धरने, और बंदगी करने की मूल मंत्र (मांत्रा) है।
"मांत्रा पाई सोई जीता"।
जिस साध ने यह मांत्रा पा ली, यानी 'सत्तअबगत' नाम को ह्रदय में बसा लिया, उसने सब कुछ जीत लिया।
'सत्तअबगत' वही नाम है, जिसको जपकर संत पार उतर गये।
हम पूरा लाभ नहीं पा रहे, उसका मुख्य कारण है कि, हममें उतनी द्रणता, विस्वास, तलब, तैयारी, और लगन नही है।
सत्तनाम।(राजमुकट साध)।