*अन्दर लौ लागी रहै,
बाहर क्या दिखलाय*
मालिक से जुड़ने के लिये, उन्हें याद करने, उनसे बिनती, और फरियाद करने के लिये, किसी बाहरी दिखाबा, की आवश्यकता नहीं है।
उन पर पूर्ण विस्वास करना, व अन्तर मन से मालिक से जुड़े रहना ही, साध की साधना है।
"बन्दे की माहे की मालूम, दिल की तौ दिल मालिक जानै, लखैं रूम की रूम"।
मालिक दाता तो रोम रोम के भेदी हैं, हर दिल के अंदर जो फुरना उठती है, उसे भी हमारे मालिक दाता जान लेते हैं।
बाहर दिखलाना, यानी बाहर बालों से वाहवाही की चाँहना रखना।
"करनी माफक ऐसा परघटा, देख जगत भरमाया"।
तीन जुग तक, संतों ने जो करनी की, उसे देखकर दुनियां बाले, इतने भरमा गये कि, उनके ही गुणगान करने लगे।
परिणाम सरूप संतों का अहंकार बढ़ता गया, वह मालिक से दूर होते गये, और फिर एक दिन ऐसा भी आया, जब उनसे नाम ग्यान ही छूट गया।
उन्हीं संतों ने सतगुर साहिब की विशेष कृपा महर से, चौथे जुग में जो कमाई की,
वह कमाई, उन संतों के अलाबा, मालिक दाता नें जानी, और मालिक दाता की अटूट कृपा महर हुई कि, उन्होंने संतो से, ग्यान पढ़बाया, तो हम सबने जानी।
दुनियां बाले उनकी उस कमाई को, जिसे करके संत भवसागर पार उतर गये, जान ही नहीं पाये।
साध का काम है कि, वह हर दम, हर सांस पर मालिक को याद करें,
हर आती जाती सांस पर मालिक का सुमरन करे, मालिक में पूर्ण आस्था और विस्वास रक्खें।
सत्तनाम।(राजमुकट साध)।
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मालिक से जुड़ने के लिये उन्हें याद करने के लिये
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