साखी गुरु नानक देव जी महाराज की

साखी गुरू नानक देव जी महाराज की,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,एक समय की बात है के श्री गुरू नानक देव जी महाराज और उनके 2 शिष्य बाला और मरदाना किसी गाँव मे जा रहे थे ,,,चलते चलते रास्ते मे एक मकई का खेत आया ।बाला स्वभाविक बहुत कम बोलता था मगर जो मरदाना था वो बात की नीँव उधेढ़ता था ,,,मकई का खेत देख कर मरदाने ने गुरू नानक जी महाराज से सवाल किया ,,,के बाबा जी ईस मकई के खेत मे जितने दाने है क्या वो सब पहले से निर्धारित कर दिऐ गए है के कौन ईसका हक्कदार है और यह किसके मुँ ह मे जाऐंगे तो ईस पर गुरू नानक जी महाराज ने कहाँ बिल्कुल (पुत्तर) ईस संसार मे कही भी कोई भी खाने योग्य वनस्पति पर मोहर पहले से ही लग गई है और जिसके नाम की मोहर होगी वही जीव उसका ग्रास करेगा ,,, गुरू जी की ईस बात ने मरदाने के मन् के अन्दर कई सवाल खड़े कर दिए ,,, मरदाने ने मकई के खेत से एक मक्का तोड़ लिया और उसका एक दाना निकाल कर हथेली पर रख लिया और गुरू नानक जी महाराज से यह पूछने लगा बाबा जी कृपा करके आप मुझे बताए के ईस दाने पर किसका नाम लिखा है ,,,ईस पर गुरू नानक जी महाराज ने जवाब दिया के इस दाने पर एक मुर्गी का नाम लिखा है ,,,मरदाने ने गुरू जी के सामने बड़ी चालाकी दिखाते हुए मकई का वो दाना अपने मुँह मे फेंक लिया और गुरू जी से कहने लगा के कुदरत का यह नियम तो बढ़ी आसानी से टूट गया,,,,,मरदाने ने जैसे ही वो दाना निगला वो दाना मरदाने की श्वास नली मे फस गया ,,,,,अब मरदाने की हालत तीर लगे कबूतर जैसी हो गई मरदाने ने गुरू नानक देव जी को कहा के बाबा जी कुछ कीजीए नही तो मै मर जाउंगा ,,,गुरू नानक देव जी महाराज ने कहा बेटा मै क्या करू कोई वैद्य या हकीम ही इसको निकाल सकता है पास के गाँव मे चलते है वहाँ किसी हकीम को दिखाते है ,,,मरदाने को लेकर वो पास के एक गाँव मे चले गए,,वहाँ एक हकीम मिला उस हकीम ने मरदाने की नाक मे नसवार डाल दी नसवार बहुत तेज थी नसवार सुंघते ही मरदाने को छींके आनी शुरू हो गई मरदाने के छीँकने से मकई का वो दाना गले से निकल कर बाहर घिर गया जैसे ही दाना बाहर घिरा पास ही खड़ी मुर्गी ने झट से वो दाना खा लिया ,मरदाने ने गुरू नानक देव जी से क्षमा माँ गी और कहा बाबा जी मुझे माफ कर दीजीए मैने आपकी बात पर शक किया ,, ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,हम जीवो की हालत भी एसी ही है ,,,हम ईस त्रिलोकी मे फसे हुए अंधे कीढ़े है ,,,जो दर दर की ठोकरे खाते है । और हम खुद को बहुत सियाना समझते है ,,,,बड़े अच्छे भाग्य से हमे यह शरीर मिला बड़े भाग्य से सेवा मिली सत्तसंग मिला और कामल मुर्शद ने हम जैसे कीढ़ो की जिम्मेदारी लेकर नाम दान की बख्शिश भी कर दी मगर क्या हमने बाबा जी का कहना माना क्या हमारे शंसे खत्म हो गए ,,,बाबा जी ने हम अँधो को अपना हाथ पकड़ाया है और वो कामल मुर्शद हम जीवो को सत्पुरूष से जरूर मिलाएगा ,,,,हमे बिना किसी तर्क वितर्क, कैसे,,क्यु,,कहाँ को छोड़कर गुरू का हुक्म मानना चाहिए ,,,,,,,,,,,,,,,,