जब मौन शांत और ध्यान में आती जाती श्वास की पहचान हो



जब मौन शांत और ध्यान में आती जाती श्वास की पहचान हो और पता चले,अब आइ, ठहरी, अब गई, तब इस श्वास में क्या मिश्रित है, भगत या जगत, इसका अहसास और अनुभव होना बहुत ज़रूरी है

हर श्वास पर नाम तो तभी जपा जा सकता है ना जब आती जाती श्वास और उसकी गति की पहचान हो
संतों ने बार बार जुगत का वर्णन किया है

श्वास श्वास की फेरो माला
अगर श्वास तेज़ी से व्यय कर ली तो लेखा किसका देंगे?

पल पल में रहियो सावधान

पल तो श्वास से भी छोटा होता है और उसकी सजगता का हुक्म है तो फिर श्वास तेज़ व्यय होकर अंत तेज़ी से निकट आ रहा है इसकी जानसकारी अत्यंत ज़रूरी नहीं है? इसकी जुगत कि हर श्वास पर नाम का स्मरण मिश्रित हो अत्यंत ज़रूरी है

तेज़ी ना आकर मन में निर्मलता, ग़रीबत,प्रेम,सदाचार का आविर्भाव हो
श्वास धीमी चले बिना किसी टार्गट के क्यूँकि 21600 दम यह तो हमें स्वभाव में मिला है, हम ही मूरख हैं जो व्यथा श्वास खो रहे हैं
श्वास पूँजी है और इसका सही व्यय भगत मार्ग में अत्यंत ज़रूरी है क्यूँकि यही इस प्राणी को मालिक से मिलाने का एकमात्र ज़रिया है

श्वास अत्यधिक धीमे लेना या चढ़ा लेना भी चोरी है
तू तो कुबधी चोर सदा का
ज्ञान में किसके लिए कहा है और क्यूँ यह हम सब जानते हैं

विचार करें

भाई ,श्वास कम निकल रही हैं या तीव्र व्यय हो रही हैं इस बात की सजगता भी नहीं आइ तो कैसे जानेंगे कि श्वास भगत की तरफ़ की निकल रही है या जगत की?
स्वाँसा राखै नाम संग  सुरती रहै समाय
यही मुकत का धाम है  सतगुर दई बताए..


स्वाँस तो हर क्षण मालिक दे रहे है सुरत आपके हुक्म पर टकटकी लगाए रहे कि हर पल हम हुक्मी रहेंगे और यह हुक्म मालिक हम मान पाए ... माने हर समय हुक्मी हो कर रहने की सीख पर चलते रहे
तो हमारी सुरत हुक्मी के हुक्म पर रहेगी जिससे आठौ पहर की बन्दगी सहजता मे हो सकती है ।