ससार में सभी मनुष्य मौजूदा स्थिति में गुण एवं अवगुण दोनों से भरे हुए हैं

ससार में सभी मनुष्य मौजूदा स्थिति में गुण एवं अवगुण दोनों से भरे हुए हैं।न तो कोई ऐसा व्यक्ति है जिसके अंदर सारे गुण भरे हैं अवगुण नहीँ, न ऐसा कोई व्यक्ति है जिसके अंदर केवल अवगुण हों और कोई गुण न हो।अगर सारे गुण हों तो फिर परमहंस बनकर मालिक के पास ही पहुंच जायेगा, सारे अवगुण हों तो जीव बनकर पशु पक्षी की योनि में पहुँच जायेगा।पशु पक्षी के भी अपने गुण अवगुण होते हैं,जो कि हर पशु पक्षी में अलग अलग हैं।

 जब हमारे अंदर गुण अवगुण दोनों ही हैं, तो हमें करना क्या है?हमें अपने विचारों को तराशना है हीरे की भांति जैसे हीरा तराशने के बाद ही मूल्यवान बनता है ऐसे ही हम अपने गुणों को अपने विचार का अंग बनाएं अवगुण तराश कर विचारों से अलग करते जायें।लेकिन यह काम बिना प्रशिक्षण के नहीँ कर सकते, साध संगत नित्य करने से जिस मनुष्य के अंदर सिख भाव होता है,स्वतः प्रशिक्षित होता जाता है।अगर साध संगत में हम प्रोफेसर बनकर नित्य जाते भी हैं तो कुछ नया सीखना मुश्किल हो जाता है।

जब तक गुण अवगुण गड्डमड्ड हैं हमारी कोई कीमत नहीँ।जैसे दो अच्छी और बुरी चीजें मिक्स हो जाएँ उसमें चाहे अच्छी चीज की मात्रा ज्यादा भी हो ,तो भी उसका जो स्वरूप होगा उसे बुरा ही कहा जाता है।यही स्थिति हमारी भी है।हमें अपने ख़राब विचारों को पहिचान कर उनको कूड़ा मानकर नित्यप्रति अन्तःकरण से बाहर फेंकना है, शुध्द विचारों को सहेजना है।यह एक दिन का काम नहीँ प्रतिपल चेतन अवस्था में रहकर करना है।

काम बहुत बाकी है, समय थोड़ा है,अब एक भी पल व्यर्थ न जाए इसका प्रयास और मालिक से प्रार्थना अबिलम्ब शुरू कर दें।अन्यथा इस जीवन को भी व्यर्थ में गवांने के हम और केवल हम ही जिम्मेदार होंगे।फिर मौका मिला या न मिला चौरासी लाख योनियों में अपने विचारों की योग्यता अनुसार भटक रहे होंगे, जिसे सोंचकर भी रूह काँप जायेगी।फैसला हमें ही करना है, फैसले में देरी का कारण हमारा ग़ाफ़िल पन है, ग़ाफ़िल की मार निश्चित है, सचेत रहना ही होगा देरी सिर्फ मेरी तरफ से है।
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