सामान्य जीवन में उपलब्धियां हासिल करने वाले व्यक्ति सबके आकर्षण का केन्द्र बनते है

सामान्य जीवन में उपलब्धियां हासिल करने वाले व्यक्ति सबके आकर्षण का केन्द्र बनते है और मन में कौतूहल पैदा करते है। उनकी तरक्की का अनुमान लगाते है, इसमें कभी भाग्य को, कभी 'मालिक ' की मैहर को, कभी उसमें परिस्थितयों का योगदान दिखता है।
ग्यान तो कह रहो है,
" सत्तगुर साहेब सब के दाता "
सभी को संसार में हर मनुष्यों की हर प्राणी की समस्त संसार में जो भी है उसकी रचना करी है, कोई भेदभाव नही है, मनुष्य को विशिष्टता दी है।
" नख शख से जिन रसना दीन्हीं, शब्द सुनन कौ कान "
मनुष्य को देहधारी बनाया है, नि:संदेह क्षमतायें भी समान दी है। मनुष्य अपनी क्षमताओं की पहचान करके उनको कैसे विकसित करता है, यह उस पर निर्भर करता है। कोई बंदिश नही, कोई अंकुश नही है। ग्यान कह रहो है,
" समदृष्टि शीतल सदां रै भाई, इनसै परदा ना कीजै जान "
" अबगत आप " की किरपा-मैहर संसार में सामान रूप से बरस रही है।
भोजन बनाने की सारी सामग्री रख दी गई है, भोजन खुद को बनाना है कैसे बनाना है यह तो अपनी अर्जित की गई कुशलता पर ही निर्भर करता है।
मनुष्य की करनी और उसके भाव ही उसको गंतव्य स्थान पर ले जाते है।
" भाव भाव सै सिद्ध बतलाबै "
संसार में पशु-पक्षी भी अपना काम करके घोंसले पर वापिस आ जाते है,पक्षियों का समूह भी हजारों मील का सफर करके मौसम बदलते ही वापिस लौट आते है।
पशु-पक्षियों तक को अपनी राह पता है, तो मनुष्यों को क्यों नहीं?
हम सब जने तो साध है, हमें तो राह भटकने की जरूरत नही है परन्तु फिर भी हम भटक रहे है,संसारिक प्राप्तियों के लोभवश कितने भी करतूत कर लें, किन्तु ' सत्तनाम ' के बिना गत नही है।
मनुष्य पराश्रयी और सुविधागामी हो चुका है, वह सरलता से और पलक झपते संसारिक सुविधा पा लेना चाहता है।
सच से भागता है झूठ में लिप्त होता रहता है, जबकि झूठ चलता नही है।
हमारे पास ( साधों ) सच्चा नाम और सच्चो ग्यान है, सच्चे गुरू सत्तगुर उदादास है।
किसको क्या और कैसे मिला यह हमारा विषय नही है, हमें तो करनी, करनी है, फल हमारे उदादासबाबा देगें।
" परस पढै पामन का कागद, सत्तगुर,अबगत जानै "
हम सब जनों को तो जगत की काई को मेट कर सत्तगुर की शरण में आनो है।
सत्तगुर साहेब गत और मुकत के दाता है।
" जिननै अब कै मेटी काई, जुग जुग मौज भगत की पाईं "
सतनाम
Mks