हमारी सोच मैं बहुत कचरा है

सतनाम सै सुरत लगाबै ।
तौ सतगुर उनकौ साँची सीख सुनाबै ।।

मालिक की सीख , बानी ब शब्द सब एक ही बात है । हमारी सोच  मैं बहुत कचरा है इस लिये सुरत की शक्ति कमज़ोर हो गई है ब आपके शब्द से सुरत नही लगती है सुरत में अहम का भार है

मालिक सै सच्ची लगन ब चाह भाव सै सोच को कचरा साफ़ हो सकता है ब सुरत आपकी सीख सुनन के लायक बन सकत है ।

निसवारथ सेबा सै भी सोच की गन्दगी की सफ़ाई बहुत तीबरता सै होती है ।
निस्वार्थ सेवा :-
सेवा करना ब बदलें में कोई चाह नही । इसकी सबसे बड़ी सीख हमको हमारे दाता दे रहे है आप घनी हमको हर तरह से सींच रहै है आपके पाँचो तत्व भी हमारी सेबा कर रहे बदलें में आप की कोई चाह नहीं है ।

सेबा ऐसे करना जैसे यह सेबा हमें मालिक नै सौंपी है ब आप की ही शक्ति आप के बनाए हुए प्रानी की सेबा कर रही है हम कहीं पर भी नहीं है ।


आद शब्द सै सेबा मंडी