भगतसिंह न्यूं बोल्या जज तै ,

उस जेल की चारदीवारी में बंद वो आज़ाद था,
दिल में उसके देशभक्ति का जज्बा आबाद था।
मातृभूमि पर न्यौछावर कर गया जिंदगी अपनी,
हिंदुस्तान रहे आबाद, यही करता फरियाद था।

{ अदालत में अंग्रेज जज ने भगतसिंह से कहा --" तुम आतंकवादी हो ; यह अदालत तुम्हें फांसी का हुक्म सुनाती है । भगतसिंह बोले --" हम आतंकवादी नहीं ; क्रांतिकारी हैं }

( भगतसिंह का ब्यान )

                     ---रामधारी खटकड़

भगतसिंह न्यूं बोल्या जज तै , फांसी तै ना डरते रै
देश की खातर जान देणियें , मरकै भी ना मरते रै..(टेक)

खून-खराबा काम नहीं म्हारा, दूर जुलम को करणा   सै
मातृभूमि  लागै  प्यारी ,  इसकी  खातर  मरणा  सै
अंग्रेजों से ताज छीन कै , हिन्द के सिर पै धरणा सै मेहनतकश हो सुखी जगत म्हं,इसका दुखड़ा हरणा सै
शोषण को मिटावण का आह्वान जगत म्हं करते रै....
देश की खातर जान देणियें , मरकै भी ना मरते रै....

माणस नै जो माणस लूट्टै , कति देश तै प्यार नहीं
जो जनता पै जुलम करै , चाहिए वो सरकार नहीं
आम आदमी सब समझै , मूरख कोय नर-नार नहीं
हिन्दू-मुस्लिम एक सैं सारे,आपस म्हं तकरार नहीं
फूट गेर कै तुम जनता म्हं , फेर हकूमत करते रै..
देश की खातर जान देणियें , मरकै भी ना मरते रै..

अंग्रेजां  नै  म्हारे  देश  की  कर  दी  रे - रे   माट्टी
जुल्म देख कै जनता ऊपर , मन म्हं होई उचाटी
देश की धरती रोवण लाग्गी , क्यूं  ना  बेड़ी  काट्टी
ईब  हुक्म  ना  चलै  तुम्हारा , सारी जनता  नाट्टी
जुल्मी तै हम टक्कर लेंगें,ना घूंट सबर की भरते रै....
देश की खातर जान देणियें , मरकै  भी ना मरते रै.....

किते-किते गोदाम सड़ैं , किते भूखे बच्चे बिलकैं रै कितनी कलियां मुरझाई सैं,बीच आधम म्हं खिलकै रै
बेचण लगे दलाल देश को , गोरयां गेल्यां मिल कै रै
विचार करो इब देशवासियो, एक सलाह म्हं चल कै रै
रामधारी कह वीर बणो , क्यूं ठण्डी आहें भरते रै.....
देश की खातर जान देणियें , मरकै भी ना मरते रै..
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