मन को मैला करना ही पाप है

🌹गुरूजी--
मन को मैला करना ही पाप है और मन को पुनीत करना ही पूण्य है।

🍁जब जब हम दुराचरण करते हैं, चाहे वाणी से करे या शरीर से करें, हमें पहले अपने मन में कोई विकार जगाना होता है, मन को मैला करना होता है।
इसलिये मैले चित्त पर आधारित जो भी कर्म किया जाय वह पाप ही है और उसका फल दुखदायी ही होता है।

🌻इसी प्रकार जब हम सदाचरण करते हैं, चाहे वाणी से करें चाहे शरीर से करें, उस समय मन को विकार विमुक्त करना होता है।
क्योंकि चित्त में विकार हो, चित्त मैला हो तो उस मैले चित्त से शरीर या वाणी का कोई सत्कार्य हो ही नही सकता।
🌺
इसलिये पुनीत चित्त पर आधारित जो भी कर्म किया जाय वह पूण्य ही है और इस सदाचरण के सत्कर्म का फल सुखदायी ही होता है।
तभी कहा--
सदाचरण ही पूण्य है,
दुराचरण ही पाप।
सदाचरण से सुख जगे,
दुराचरण दुःख ताप।।

🌷धर्म का यानि निसर्ग का यह नियम है कि की मन में पाप जगाकर जब जब दुराचरण करते हैं, तब तब अपने आप को दुःखी बनाते हैं और दुसरो को भी पीड़ा पहुंचाते हैं।
इसी प्रकार जब जब मन को पुनीत करके कोई सदाचरण करते हैं, सत्कर्म करते हैं तब तब स्वयं अपने आप को सुखी बनाते हैं और दुसरो को भी सुखी बना कर उनका उपकार करते हैं।